3 अक्तू॰ 2010

1 टिप्पणी:

  1. जैन तेरापंथ धर्मसंघ के दशम् अधिशास्ता ज्योतिपुंज आचार्यश्री महाप्रज्ञजी प्रज्ञा संपन्न, विलक्षण व्यक्तित्व के धनी और चमत्कारिक पुरुष थे। उनकी समत्वप्रज्ञा जागृत थी। उपशम की साधना, संयम और मानसिक संतुलन के सघन अभ्यास ने उन्हें प्रज्ञा के शिखर पर प्रतिष्ठित किया। वे जैन आचार्यों की परंपरा में युग प्रधान आचार्य थे। अहिंसा यात्रा कर उन्होंने एक नए इतिहास का सृजन किया।

    परमार्थ, पुरुषार्थ, समर्पण और सहजता से अनुप्राणित उनके जीवन का अणु-अणु महानताओं का विशद् कोष था। वे मानवीय मूल्यों के उन्नायक थे। निःसंदेह आचार्यश्री महाप्रज्ञजी देश की एक महान धरोहर थे। आध्यात्मिक अनुसंधान की प्रक्रिया से गुजरते हुए उन्होंने प्रेक्षाध्यान पद्धति का आविष्कार किया।

    आज इस विधि द्वारा अनेक व्यक्ति शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रोगों से मुक्त हो रहे हैं। आज जीवन विज्ञान को शिक्षा के क्षेत्र में भावनात्मक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जा सकता है, जो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की शिक्षा जगत को बहुत बड़ी देन है। सृजनचेता आचार्यश्री लगभग 300 ग्रंथों के सृजनकार हैं।

    जैन आगमों का सूक्ष्म एवं मर्मस्पर्शी विवेचन जैन शासन की एक बहुमूल्य निधि कही जा सकती है। वे भूगोल, खगोल, ज्योतिष, न्याय, विज्ञान के विशेष रहस्यों के ज्ञाता होने के साथ-साथ मंत्रदृष्टा आचार्य और योग के महान साधक थे।

    उस असीम व्यक्तित्व को ससीम शब्दों में बाँधना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है।

    आचार्य श्री महाप्रज्ञ को उनके 96 वें जन्मदिवस (प्रज्ञा दिवस) पर श्रद्धासिक्त नमन।

    अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद्

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