8 नव॰ 2010

धर्म का सार अहिंसा

            धर्म क्या है ? जो हमें जीवन जीने की कला सिखाये वही धर्म है. यह अध्यात्म धर्म, राष्ट्र धर्म, कर्तव्य धर्म, पुत्र धर्म, नैतिक धर्म, व्यवहार धर्म आदि  में विभक्त किया जा सकता है. लेकिन इन सारे धर्मो का पालन तभी सही ढंग से हो सकता है जब आप अहिंसा को विस्तार से समझाने का प्रयास करेंगे.
           जो आप चाहते है कि आपके साथ न किया जाये, वह व्यव्हार अथवा कार्य आप दुसरो के साथ न करे, यही अहिंसा है. आप चाहते है आपको कोई चोट न पहुचाये तो आप किसी को चोट ना पहुचाये, आप चाहते है कि आपको कोई अपमानित ना करे तो आप भी किसी का अपमान न करे, आप चाहते है कि आपकी वस्तु कोई न चुराए तो आप भी किसी कि वस्तु ना हरण करे, आप चाहते है कोई आपसे झूठ न बोले तो आप भी असत्स्य संभाषण न करे. सारे  धर्मो का सार अहिंसा ही है. बाकी सारी क्रियाए-विधिया-नियम-व्रत तो इसका विस्तार है. 
           यदि आप जीवन जीने की कला सीखना चाहते है एवं अपने धर्म को निभाना चाहते है तो अहिंसा की इस परिभाषा को समझ कर उसे अपनाना होगा.

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