चौबीस घंटे का गणतंत्र दिवस
"चौबीस घंटे का केवल, था अपना गणतंत्र !
उसी पुराने ढर्रे पर, कल से सक्रिय तन्त्र!!
कल से सक्रिय तन्त्र, कमीशन,घूस,दलाली!
जस की तस ही बनी हुई, व्यवस्था साली!!
दो दिन के ड्रामों ने थोड़ी, बदली सूरत!
जनता कब से बनी हुई, पत्थर की मूरत!!
---श्री सुरेश बुन्देल
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